इस लिंगाष्टक में आठ छंद हैं। इसलिए इसे अष्टक कहा जाता है। भगवान शिव की पूजा किसी मूर्ति या छवि के रूप में मानव रूप में नहीं की जाती है। इसे केवल लिंग के आधार पर ही मापा जाना चाहिए। (आप इन अन्य श्लोकों को अन्य पृष्ठों पर पढ़ सकते हैं: श्रीरुद्रं नामाकं, श्रीरुद्रं चमकं, शिव तांडव स्तोत्र, शिवाष्टकम, विश्वनाथ स्तुति|)
लिंगाष्टकम
ब्रह्ममुरारि सुरार्चितलिंगं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगं
दॆवमुनि प्रवरार्चितलिंगं
कामदहन करुणाकरलिंगं
रावणदर्प विनाशकलिंगं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगं
सर्वसुगंधि सुलॆपितलिंगं
बुद्धिविवर्थन कारणलिंगं
सिद्धसुरासुर वंदितलिंगं
तत्प्रणमामि सदाशिवलंगं
कनकमामणी भूशितलिंगं
फणीपतिवॆष्टित शॊभित लिंगं
दक्षसुयज्ञ विनाशकलिंगं
तत्प्रणमामि सदाशिवलंगं
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कुंकुमचंदन लॆपित लिंगं
पंकजहार सुशॊभितलिंगं
संचितपाप विनाशकलिंगं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगं
दॆवगणार्चित सॆवितलिंगं
भावैर्भक्तिभि रॆवचलिंगं
दिनकरकॊटि प्रभाकरलिंगं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगं
अष्टदळॊ परिवॆष्टितलिंगं
सर्वसमुद्भव कारणलिंगं
अष्टदरिद्र विनाशनलिंगं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगं
सुरगुरु सुरवरपूजितं लिंगं
सुरवरपुष्प सदार्चितलिंगं
परमपदपरमात्मकलिंगं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगं
लिंगाष्टक मिदंपुण्यं यःपठॆच्छिवसन्निधौ शिवलॊक मवाप्नॊति शिवॆन सहमॊदतॆ.
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