ममहिषासुर मर्दिनी देवी दुर्गा के अवतारों में से एक है। इस एपिसोड में उन्होंने अपने त्रिशूल से भैंस राक्षस को मार डाला। यह स्तोत्र उन्हीं की स्तुति में रचा गया है। श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र अनुष्टुप छंद में रचा गया है। और इसमें भगवान विष्णु के एक हजार नाम शामिल हैं। (आप इन अन्य श्लोकों को अन्य पृष्ठों पर पढ़ सकते हैं: अन्नपूर्णा देवी स्तुति, सरस्वती देवी स्तुति, श्रीकृष्णा स्तुति, सुब्रह्मण्य स्वामी ध्यानम)
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र
अयिगिरि नंदिनि, नंदित मॆदिनि, विश्व विनॊदिनि नंदनुते
गिरिवर विंध्य शिरॊधिनि वासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते
भगवति हेशिति कंठकुटुंबिनि भूरिकुटुंभिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
सुरवरवर्षिनि दुर्धरदर्षिणि दुर्मुखमर्षिनि हर्षरते
त्रिभुवनपॊषिणि शंकरतॊषिणि किल्मशमॊषिणि घॊषरते
दनुजनिरॊषिणि दितिसुतरॊषिणि दुर्मदशॊषिणि सिंधुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
अयि जगदंब मदंब कदंब वनप्रियवासिनि हासरते
शिखर शिरॊमणि तुंगहिमालय शृंगनिजालय मध्यगते
मधुमधुरे मधुकैटभभंजिनि कैटभभंजिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
अयि शतखंड विखंडितरुंड वितुंडितशुंड गजाधिपते
रिपुगजगंड विदारणचंड पराक्रमशुंड मृगाधिपते
निजभुजदंड निपातितखंड विपातितमुंड भठाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
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अयि रणदुर्मदशत्रुवधॊदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
चतुरविचारधुरीणमहाशिव दूतक्रित प्रमथाधिपते
दुरितदुरीहदुराशयदुर्मति दानवदूत कृतांतमते
जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
अयि शरणागत वैरिवधूवर वीरवराभयदायकरे
त्रिभुवनमस्तक शूलविरॊधिशिरॊधिकृतामल शूलकरे
दुमिदुमितामर दुंदुभिनाद महॊमुखरीकृत तिग्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
अयि निजहुंक्रिति मात्रनिराक्रित धूम्रविलॊचन धूम्रशते
समरविशॊषित शॊणितबीज समुद्भवशॊणित बीजलते
शिवशिवशुंभनि शुंभमहाहवतर्पित भूतपिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
धनुरनुसंगरणक्षणसंग परिश्फुरदंग नटत्कटके
कनकपिशंग प्रिशत्कनिशंग रसाद्भटशृंग हताबटुके
क्रुतचतुरंग बलक्षितिरंग घटद्बहुरंग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
जय जय जप्यजये जयशब्द परस्तुतिटतत्पर विश्वनुते
झण झण झिंझिमिझिंक्रितनूपुर सिंजितमॊहित भूतपते
नटित नटार्धनटीनटनायक नाटितनाट्यसुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनॊहरकांतियुते
श्रित रजनी रजनी रजनी रजनी रजनीकरवक्रवृते
सुनयनविभ्र मरभ्र मरभ्र मरभ्र मरभ्र मराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लिक मल्लरते
विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक भिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते
सित क्रुत फुल्लिसमुल्लसितारुणतल्लज पल्लवसल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
अविरलगंड गलंमदमॆदुर मत्तमतंगजराजपते
त्रिभुवन भूषण भूतकलानिधि रूपपयॊनिधिराजसुते
अयि सुदतीजनलालसमानस मॊहनमन्मथराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
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कमलदलामलकॊमल कांतिकलाकलितामल बाललते
सकलविलासकलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले
अलिकुलसंकुल कुवलयमंडल मौलिमिलद्भकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
करमुरलीरव वीजित कूजित लज्जित कॊकिल मंजुमते
मिलितपुलिंद मनॊहरगुंजित रंजितशैलनिकुंजगते
निजगुणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भ्रुत कॆलितले
जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
कटितटपीतदुकूलविचित्र मयूखतिरस्क्रित चंद्ररुचे
प्रणत सुरासुर मौलिमणिस्फुरदंशुलसन्नख चंद्ररुचे
जितकनकाचल मौलिपदॊर्जित निर्भरकुंजर कुंभकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
विजितसहस्र करैकसहस्र करैकसहस्र करैकनुते
क्रुतसुरतारक संगरतारक संगरतारक सूनुसुते
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधि समाधि सुजातरते
जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति यॊनुदिनं सशिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः सकथं न भवेत
तव पदमेव परं पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
कनकलसत्कल सिंधुजलैरनुसिंचिनुते गुणरंगभुवं
भजति स किं न शचिकुचकुंभ तटीपरिरंभ सुखानुभवं
तव चरणम शरणम करवाणि नतामरवाणि निवासिशिवम
जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
तव विमलॆंदुकुलं वदनेंदुं अलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूत पुरींदुमुखीसुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते
मम तु मतं शिवनामधने भवती क्रिपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
अयि मयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतॊ जननी कृपयासि यथासि तथनुमितासिरते
टदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुताप मपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते.
अयि रणदुर्मदशत्रुवधॊदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
चतुरविचारधुरीणमहाशिव दूतक्रित प्रमथाधिपते
दुरितदुरीहदुराशयदुर्मति दानवदूत कृतांतमते
जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
अयि शरणागत वैरिवधूवर वीरवराभयदायकरे
त्रिभुवनमस्तक शूलविरॊधिशिरॊधिकृतामल शूलकरे
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जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
तव विमलॆंदुकुलं वदनेंदुं अलं सकलं ननु कूलयते
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मम तु मतं शिवनामधने भवती क्रिपया किमुत क्रियते
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अयि मयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतॊ जननी कृपयासि यथासि तथनुमितासिरते
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जय जय हे महिषासुरमर्धिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते.